इश्वर की लीला
अपरम्पार है
जो बह रही है
कैसी अद्भुत धार है
चेहरे पर
मुस्कान लिए
जीवन जय करते हैं
हौसले की धूप खिली है
और सरिता की आँखों से
मोती झरते हैं!
आँखों से छलकता
असीम प्यार है
कैसी अनोखी
यह बयार है
अंगारों पर
पूर्ण कौशल के साथ
चरण धरते हैं
पीर से भरा हृदय है
और बादल औरों की
पीर हरते हैं!
पीड़ा के प्रवाह में
ईश-स्मरण साकार है
तटों को बांधे हुए
मझधार है
जीवन नौका खेते हुए
सुख-दुःख की
मार सहते हैं
बिखरते हुए तटों पे
लहर कितनी ही
कथा कहते हैं!
इन कथाओं में
अद्भुत सार है
आने-जाने की महिमा
अपरम्पार है
जब तक हैं धरा पर
चलो जल कर
राहें रोशन करते हैं
जियें यूँ कि
जीना-मरना सब सार्थक हो जाए
जीते जी हम क्यूँ(?)रोज मरते हैं!
जीते जी हम क्यूँ(?)रोज मरते हैं!
प्रस्तुतकर्ता
अनुपमा पाठक
at
2 दिसंबर 2011
39 टिप्पणियाँ:
bahut achchi lagi.....
'जब तक हैं धरा पर
चलो जल कर
राहें रोशन करते हैं'
इन सुन्दर पंक्तियों ने जीवन को उद्देश्यपूर्ण राह दिखा दी ..
शुभकामनायें ..
जियें यूँ कि
जीना-मरना सब सार्थक हो जाए
जीते जी हम क्यूँ(?)रोज मरते हैं!
मैंने कल दो पंक्तिया लिखी थी मुझे लगता है उनको शेयर करने का इससे अच्छा स्थान और कहीं नही है ..
बूँद बूँद अमृत है जीवन कुछ ही इसको पी पाते हैं
प्रेम सभी को मिलता लेकिन कुछ ही इस को जी पाते हैं
सादर प्रणाम !
सार्थक और सरल किन्तु विशेष:)
.
.
जो मरने से डरते हैं; वो रोज़ मरते हैं
जो रोज़ जीते हैं; वो हँसते हुए मरते हैं
Beautiful thought expressed beautifully !!
कविता एक अनुत्तरित मगर सार्थक प्रश्न छोड़ती है जो मन को अन्दर तक कुरेदता है !
सुन्दर अभिव्यक्ति !
आभार !
सकारात्मक सोच कौ सार्थक अभिव्यक्ति...बहुत अच्छी लगी|
पीड़ा के प्रवाह में
ईश-स्मरण साकार है
तटों को बांधे हुए
मझधार है
जीवन नौका खेते हुए
सुख-दुःख की
मार सहते हैं
बिखरते हुए तटों पे
लहर कितनी ही
कथा कहते हैं!
.......ईश्वर सारी कथाओं का सार देते हैं , उदासी का कोहरा हटा मुस्कान देते हैं
जीते जी हम क्यूँ(?)रोज मरते हैं!
सार्थक व सटीक लेखन ...।
जब तक हैं धरा पर
चलो जल कर
राहें रोशन करते हैं
जियें यूँ कि
जीना-मरना सब सार्थक हो जाए
जीते जी हम क्यूँ(?)रोज मरते हैं
बेहतरीन पंक्तियाँ हैं।
सादर
पीड़ा के प्रवाह में
ईश-स्मरण साकार है
तटों को बांधे हुए
मझधार है..........बहुत ही सुंदर और सकारात्मक पंक्तियाँ.....ईश की लीला के रूप अनेक है, आपकी भावाभिव्यक्ति में उन्हें महसूस किया......बधाई
जीते जी हम क्यूँ(?)रोज मरते हैं
uskaa andaaz niraalaa hai
kab kyaa ,kyon kartaa
wo hee jaantaa hai
जियें यूँ कि
जीना-मरना सब सार्थक हो जाए
जीते जी हम क्यूँ(?)रोज मरते हैं!
Bahut khub...
www.poeticprakash.com
जीवन नौका खेते हुए
सुख-दुःख की
मार सहते हैं
बिखरते हुए तटों पे
लहर कितनी ही
कथा कहते हैं!
बड़ी सुन्दर रचना...
सादर...
जीते जी हम क्यूँ(?)रोज मरते हैं!..बहुत सुन्दर और सटीक बात कही..बहुत खूब..
जियें यूँ कि
जीना-मरना सब सार्थक हो जाए
जीते जी हम क्यूँ(?)रोज मरते हैं!
.....बहुत सच कहा है...बहुत प्रेरक और सुंदर अभिव्यक्ति..आभार
बिलकुल सच्ची बात कही आपने.....
sunder soch me gunthi sunder abhivyakti.
सार्थक प्रस्तुति।
ये जीवन है....
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा शनिवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!चर्चा मंच में शामिल होकर चर्चा को समृद्ध बनाएं....
जब तक हैं धरा पर
चलो जल कर
राहें रोशन करते हैं
जियें यूँ कि
जीना-मरना सब सार्थक हो जाए
बहुत बढ़िया रचना
Sunder rachna . Gahrey bhaw se bhari ye kavita bahut pasand aai.
जब तक हैं धरा पर
चलो जल कर
राहें रोशन करते हैं
जियें यूँ कि
जीना-मरना सब सार्थक हो जाए
जीते जी हम क्यूँ(?)रोज मरते हैं!
सकारात्मक सन्देश देती अच्छी प्रस्तुति
अनुपमा जी
आपकी कविता में प्रेम तथा अध्यात्म की गहराई छाई हुई है ..और यही बात इस कविता को बेहतर बना रही है .
बधाई !!
आभार
विजय
-----------
कृपया मेरी नयी कविता " कल,आज और कल " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/11/blog-post_30.html
जब तक हैं धरा पर
चलो जल कर
राहें रोशन करते हैं
जियें यूँ कि
जीना-मरना सब सार्थक हो जाए
जीते जी हम क्यूँ(?)रोज मरते हैं!
सच ही तो है मरने के डर से इंसान जी भी नहीं पाता और जीने की लालसा में मृत्यु को निमंत्रण दे आता है.. सुंदर कविता!
वाह...बेजोड़ भावाभिव्यक्ति...बधाई स्वीकारें
नीरज
जीते जी हम क्यूँ(?)रोज मरते हैं!
इस पंक्ति पे शायद कुछ समय के
लिए सब मौन हो जायेगा..!
सार्थक अभिव्यक्ति।
jeet jee ham kyu roj marte hai?
is sawal ko jis din manav samajh jata hai wo mahamanav ho jata hai..........
अनुपमाजी,..
वाह!!!बहुत खूब बेहतरीन पोस्ट ..बधाई....
मेरे नए पोस्ट -जूठन-में आपका इंतजार है
बहुत सुन्दर! तिल-तिल मरने और शहादत पाने में लम्बी दूरी है।
इश्वर की लीला सच में अपरम्पार है..
वैसे, अंतिम सवाल का जवाब मेरे पास नहीं है!! :)
जब तक हैं धरा पर
चलो जल कर
राहें रोशन करते हैं
प्रेरक पंक्तियां।
बहुत बड़ी सीख देती हुई सुंदर कविता।
ओ पेड़...
क्या कहूँ
सदा तेरी ख़ुशी के लिए
मैं प्रार्थनारत रहूँ
और मिले जो
अभीष्ट तुम्हे
बन कर ख़ुशी के आंसू
तेरे नयनों से बहूँ
sunder likha hai
rachana
खुद जल के राहे रोशन करना आसान नहीं होता ... बहुत ही लाजवाब रचना है ...
आपका पोस्ट मन को प्रभावित करने में सार्थक रहा । बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट ' आरसी प्रसाद सिंह ' पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।
अनुपमा जी, अभिवादन एवं सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये बधाई।
जियें यूँ कि
जीना-मरना सब सार्थक हो जाए
जीते जी हम क्यूँ(?)रोज मरते हैं!
just beautiful......
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