बादलों से पटा अम्बर!

खूब बारिश हो रही है, आसमान पूरा काला है. इतना तो नहीं बरसता था यहाँ का आसमान.... कभी नहीं देखा इन दो तीन वर्षों में यूँ जब तब रोते हुए बादलों को. फुहारें आत थी, चली जाती थीं. एक झोंका आया, धरती तर हुई और पुनः धूप खिल आई. लेकिन इस बार तो घिरा ही रहता है गगन, काले बादल मंडराते ही रहते हैं और बरसता रहता है अम्बर. जिस सप्ताह अनामिका यहाँ आई हुई थी, यही हाल था, हम लोगों का घूमना बारिश ने कुछ हद तक तो नियंत्रित कर ही दिया था.
***
सुबह काले बादलों ने डरा ही दिया था, फिर हमने हिम्मत की और निकल पड़े नेतुरहिस्तोरीसका म्यूजियम की ओर. आज यहीं हमारी क्लास होनी थी सुबह नौ बजे से. सात बजे निकल लिए, क्या पता इस बारिश में कहाँ फंस जाएँ, सो समय से पहुँचने के लिए थोड़ा समय लेकर निकलना ही ठीक रहेगा… बस और फिर क्रमशः दो ट्रेन बदल कर पहुंचे हम भींगते-बचते गंतव्य तक… शायद ऐसी बारिश में पहली बार निकलना हुआ यूँ, क्लास तो बहुत समय से जा रहे हैं, स्नो फॉल  में निकले हैं पर ऐसी बारिश में छाता ताने कभी निकलना पड़ा हो, याद नहीं…!
दिन भर यूँ ही बीता लेक्चर सुनते हुए. क्लास समाप्त होने पर भी आसमान का रूप वही था, बारिश थम गयी थी पर बरसने की सम्भावना बनाने में काले बादल लगे हुए थे. आसमान बरस रहा था, मेरे भीतर भी एक उदासी सी छाई थी जो आखों से बरसना चाहती थी, कुछ बूंदा-बांदी हुई भी फिर हमने अपने आप को इधर उधर उलझा लिया. 
***
आज की भोर भी कुछ कुछ कल जैसी ही है, बस काला नहीं है अम्बर आज… कुछ किरणों ने मन से चित्रकारी की है आकाश के कैनवास पर. आज भी बरसना ही है बादलों को… सो उसी की तैयारी में व्यस्त दिख रहा है बादलों से पटा अम्बर!
जीवन यात्रा में कितने ही पड़ाव हैं, कितनी ही यात्राएं हैं, कितने ही सपने हैं, कितनी ही योजनायें हैं, कितनी तो शिकायतें हैं जीवन से…. आखिर मोल क्या है इन सबका? बरसते माहौल में बूंदों का मिट जाना दिख ही कहाँ पाता है, कि खुद को ज़रा सा नियंत्रित करने की सम्भावना जन्मे… अपने मन के अंधेरों की खातिर कोई दिया जला पाएं… ज़िन्दगी तो यह अवसर देने से रही, स्वयं ही कोशिश करनी है. 
कविता खो गयी सी लगती है, भ्रमण की कोई कहानी लिखने का मन नहीं है और फिर भी लिखे जा रहे हैं जाने क्या क्या…!


ज़िन्दगी!
एक दिन तू
मौत में ही तो
बदलने वाली है 


तेरा कोई भरोसा नहीं
आज है लबालब भरी हुई
अगले ही क्षण तू
रीत गयी प्याली है 


हम तो मात्र भ्रम हैं
जिन्हें देवता ने खेल खेल में रचा है
तू बता, ज़िन्दगी!
तेरे पास कितना जीवन बचा है 


कब कौन अपना सामान बाँध रहा है
तुझे तो हो जाता होगा न आभास
क्यूँ नहीं आगाह कर देती हमें
क्यूँ मौत के बाद बच जाता है केवल संत्रास 


तू अनमनी सी क्यूँ खड़ी है
कुछ तो बोल रे!
हम कुछ से कुछ कहे जा रहे हैं
तू इन कड़वाहटों में कोई मिश्री तो घोल रे! 


क्या कहती ज़िन्दगी?
सुनती रही चुपचाप
पास आई गले लगा लिया
हर लिया सकल ताप 


"ज़िन्दगी हूँ
सच है एक रोज मौत में बदलने वाली हूँ
आज भरी हुई तो कल
रीत गयी प्याली हूँ 


प्रश्नों के झांसे में
मत आया कर
मैं अविरल बहती हूँ
तू भी संग बह जाया कर 


क्षणिकता का सौन्दर्य ही
मेरी थाती है
मैं जब तक संग हूँ, संग हूँ
विलुप्त होने के बाद भी मेरी ही कीर्ति मुस्काती है 


मौत का मेरे आगे
वजूद ही नहीं है
जब तक है तब तक तो है ही
न होने पर भी ज़िन्दगी ही हर कहीं है!"

***

सभी को एक रोज़ स्मृति मात्र बनकर ही तो रह जाना है... एकमात्र सत्य तो यही है. कुछ दिन हुए मेरे फूफा जी नहीं रहे. उनका अचानक आँखें मुंद लेना बहुत कष्ट देता है, वो सौम्य सी छवि आँखों के सामने आ जाती है बार बार. बुआ से बहुत हिम्मत करके एक दिन बात की… हँसते खेलते कितनी बातें करते थे बुआ से, ज़िन्दगी ने ऐसी करवट ली कि हंसी ही खो गयी उनकी… क्या बात हो, बातें होती हैं तो एक सन्नाटा होता है बीच में और हमारी आँखें कोई शून्य निहारती है… 
पर क्या किया जाए, सच्चे लोग जाते भी तो ऐसे ही हैं, बिना किसी आहट के, किसी एक दिन निद्रा देवी की गोद में लेटे हुए चिर निद्रा में लीन हो जाते हैं, तैयारी क्या करनी…  राम नाम का घट तो बूँद बूँद जीवन भर भरा ही होता है उनके हृदय ने, जब आये काल…  ले जाए, उन्हें क्या!
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति!


16 टिप्पणियाँ:

Anupama Tripathi 17 सितंबर 2013 को 8:57 am बजे  

man udas karati barsaat .....atyant marmsparshi ....!!

ANULATA RAJ NAIR 17 सितंबर 2013 को 9:18 am बजे  

बहुत दुःख देती है रीती हुई प्याली.....

मन को छू जाने वाली पोस्ट..

सस्नेह
अनु

Amrita Tanmay 17 सितंबर 2013 को 10:40 am बजे  

ये सत्य कितना कटु होता है ..हैं न ?

Anita 17 सितंबर 2013 को 10:53 am बजे  

जिन्दगी तो असीम है मृत्यु ही क्षणिक है पर उस महाजीवन से परिचय करना होगा..अमृत का घट भीतर भरना होगा..

Yashwant R. B. Mathur 17 सितंबर 2013 को 2:02 pm बजे  

मर्म स्पर्शी पोस्ट


सादर

देवेन्द्र पाण्डेय 17 सितंबर 2013 को 4:05 pm बजे  

क्षणिकता का सौन्दर्य ही
मेरी थाती है...वाह!

कालीपद "प्रसाद" 18 सितंबर 2013 को 3:30 am बजे  

तेरा कोई भरोसा नहीं
आज है लबालब भरी हुई
अगले ही क्षण तू
रीत गयी प्याली है
-----------
"ज़िन्दगी हूँ
सच है एक रोज मौत में बदलने वाली हूँ
आज भरी हुई तो कल
रीत गयी प्याली हूँ

बहुत सुन्दर सार्थक सृजन !
latest post: क्षमा प्रार्थना (रुबैयाँ छन्द )
latest post कानून और दंड

Madan Mohan Saxena 18 सितंबर 2013 को 7:26 am बजे  

कितना अच्छा लिखा है आपने।
बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
कभी यहाँ भी पधारें

राजीव कुमार झा 18 सितंबर 2013 को 7:49 am बजे  

आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 19/09/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" पर.
आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा

बेनामी 18 सितंबर 2013 को 1:43 pm बजे  

बेहतरीन प्रस्तुति

downloading sites के प्रीमियम अकाउंट के यूजर नाम और पासवर्ड

Yashwant R. B. Mathur 18 सितंबर 2013 को 2:07 pm बजे  

कल 19/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!

मुकेश कुमार सिन्हा 18 सितंबर 2013 को 4:29 pm बजे  

dil ke kareeb lagi post...

ओंकारनाथ मिश्र 19 सितंबर 2013 को 2:20 am बजे  

यही तो एक सत्य है. हमरी चाह-और अनचाह से परे. नीतिकार जो भी कहें इसपर. बाद के समय से अच्छा है देते चलें वर्तमान को सब कुछ. बहुत बढ़िया पोस्ट.

Asha Lata Saxena 19 सितंबर 2013 को 3:34 am बजे  

उम्दा प्रस्तुति |
आशा

Amit Chandra 19 सितंबर 2013 को 7:49 am बजे  

behad umda prastuti.

sadar.

Bhavana Lalwani 19 सितंबर 2013 को 4:10 pm बजे  

तू इन कड़वाहटों में कोई मिश्री तो घोल रे! ... essay aur poem dono hi bahut achhi lagi.

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग के बारे में

"कुछ बातें हैं तर्क से परे...
कुछ बातें अनूठी है!
आज कैसे
अनायास आ गयी
मेरे आँगन में...
अरे! एक युग बीता...
कविता तो मुझसे रूठी है!!"

इन्हीं रूठी कविताओं का अनायास प्रकट हो आना,
"
अनुशील...एक अनुपम यात्रा" को शुरुआत दे गया!

ब्लॉग से जुड़िए!

कविताएँ