जहां से शुरू किया था सफ़र...!

पगडण्डी शीर्षक पर लिखते हुए कभी लिखा था इसे चिरंतन के लिए. आज यह कविता सामने आकर हमें पीछे की ओर ले जाने का हठ करने लगी. जहां से शुरू किया था वहीँ पर फिर से लौट जाने का कितनी बार मन होता है न, पर ऐसा संभव कहाँ? ज़िन्दगी तो आगे ही की ओर निकलती है, पुराने पथ तो बस स्मृतियों में ही मुस्कराते हैं!


कई रास्तों से गुज़र लेने के बाद
फिर ढूंढ़े है मन
वही पगडंडियाँ
जहां से शुरू किया था सफ़र… 


वैसे तो लौट पाना होता नहीं कभी
पर लौटना अगर मुमकिन भी हो-
तो भी संभव नहीं कि
पगडंडियाँ मिल जाएँगी यथावत…


समय के साथ लुप्त होते अरण्य में
खो जाती है पगडण्डी भी
बिसर जाते हैं राही भी
विराम ले लेती है जीवन की कहानी भी… 


और खो चुके सुख दुखों की
जीतीं हैं स्मृतियों सभी
चमकता है रवि, खिलता है चाँद
झिलमिल करती हैं सितारों की रश्मियाँ भी…


दौड़ रही हैं राहें दूर तलक
ले जाएँ जहां तक बढ़ते जाओ ख़ुशी ख़ुशी
जिनपर चल रहे हैं आज,
उन पगडंडियों ने मुड़ने से पहले कहा अभी!

16 टिप्पणियाँ:

Rajendra kumar 4 सितंबर 2013 को 8:18 am बजे  

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (05-09-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 107" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

Anita 4 सितंबर 2013 को 8:52 am बजे  

पुराने पथ तो बस स्मृतियों में ही मुस्कराते हैं!

सचमुच स्मृतियाँ फिर से भर देती हैं अंतर को उसी सुगंध से...

कौशल लाल 4 सितंबर 2013 को 10:34 am बजे  

इन पगडंडियो से गुजरते हुए अपने कदमो के निशान छोड़ बढते चले………… शुभकामनाएं………।

Dr ajay yadav 4 सितंबर 2013 को 11:10 am बजे  

Bahut hi khubsurat sandarbhyukt kavita.chahe jitne bade highway par nikal jaye hm par sflta ki maap to unhi pagdandio se honi h,jaha se safar shuru kiya tha.

अशोक सलूजा 4 सितंबर 2013 को 11:18 am बजे  

पगडण्डी भले न दिखाई दे .....मुड़ के देखने से ऐसी यादें सुकून देती हैं ....

Saras 4 सितंबर 2013 को 3:13 pm बजे  

समय बीत जाता है और शेष रह जाती हैं स्मृतियाँ ...धरोहर बनकर...!!!!

Suresh Chandra (SC) 4 सितंबर 2013 को 4:37 pm बजे  

आपके ब्लॉग पर आपकी रचनाएँ पढ़ना सुखद है...
फेसबूक पर आपकी प्रोफाइल नहीं दिख रही है...
शुभकामनाएँ... ... ... !!

अनुपमा पाठक 4 सितंबर 2013 को 5:04 pm बजे  

Suresh ji, यहाँ तक आने का शुक्रिया:)

abhi 4 सितंबर 2013 को 5:35 pm बजे  

ज़िन्दगी तो आगे ही की ओर निकलती है, पुराने पथ तो बस स्मृतियों में ही मुस्कराते हैं!
So true...!Aur kavita behtreen!!

राजीव कुमार झा 4 सितंबर 2013 को 6:36 pm बजे  

समय के साथ लुप्त होते अरण्य में
खो जाती है पगडण्डी भी
बिसर जाते हैं राही भी
विराम ले लेती है जीवन की कहानी भी
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .

धीरेन्द्र अस्थाना 4 सितंबर 2013 को 8:31 pm बजे  

bahut sarthk kavita.

विभा रानी श्रीवास्तव 5 सितंबर 2013 को 2:27 am बजे  

और खो चुके सुख दुखों की
जीतीं हैं स्मृतियों सभी
चमकता है रवि, खिलता है चाँद
झिलमिल करती हैं सितारों की रश्मियाँ भी
बेमिसाल अभिव्यक्ति

प्रवीण पाण्डेय 5 सितंबर 2013 को 4:50 am बजे  

भटकन के बाद तो वापस आना ही पड़ता है।

ओंकारनाथ मिश्र 5 सितंबर 2013 को 5:55 am बजे  

समय ही गुनहगार है वगर्ना अपने प्रिय पगडंडियों पर चलना कौन नहीं चाहता है. लेकिन कुछ दाने की विवशता तो कुछ उड़ान की अभिलाषा, विस्मृत करा देती हैं उन्हीं गलियों को जिनसे निकलने को कभी जी नहीं चाहता. बहुत सुन्दर रचना.

Unknown 5 सितंबर 2013 को 9:23 am बजे  

वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामना
कभी यहाँ भी पधारें

Kailash Sharma 5 सितंबर 2013 को 12:01 pm बजे  

दौड़ रही हैं राहें दूर तलक
ले जाएँ जहां तक बढ़ते जाओ ख़ुशी ख़ुशी
जिनपर चल रहे हैं आज,
उन पगडंडियों ने मुड़ने से पहले कहा अभी!

...वाह! यही जीवन है...बहुत सार्थक चिंतन...

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