पगडण्डी शीर्षक पर लिखते हुए कभी लिखा था इसे चिरंतन के लिए. आज यह कविता सामने आकर हमें पीछे की ओर ले जाने का हठ करने लगी. जहां से शुरू किया था वहीँ पर फिर से लौट जाने का कितनी बार मन होता है न, पर ऐसा संभव कहाँ? ज़िन्दगी तो आगे ही की ओर निकलती है, पुराने पथ तो बस स्मृतियों में ही मुस्कराते हैं!
कई रास्तों से गुज़र लेने के बाद फिर ढूंढ़े है मन वही पगडंडियाँ जहां से शुरू किया था सफ़र…
वैसे तो लौट पाना होता नहीं कभी पर लौटना अगर मुमकिन भी हो- तो भी संभव नहीं कि पगडंडियाँ मिल जाएँगी यथावत…
समय के साथ लुप्त होते अरण्य में खो जाती है पगडण्डी भी बिसर जाते हैं राही भी विराम ले लेती है जीवन की कहानी भी…
और खो चुके सुख दुखों की जीतीं हैं स्मृतियों सभी चमकता है रवि, खिलता है चाँद झिलमिल करती हैं सितारों की रश्मियाँ भी…
दौड़ रही हैं राहें दूर तलक ले जाएँ जहां तक बढ़ते जाओ ख़ुशी ख़ुशी जिनपर चल रहे हैं आज, उन पगडंडियों ने मुड़ने से पहले कहा अभी!
Bahut hi khubsurat sandarbhyukt kavita.chahe jitne bade highway par nikal jaye hm par sflta ki maap to unhi pagdandio se honi h,jaha se safar shuru kiya tha.
समय ही गुनहगार है वगर्ना अपने प्रिय पगडंडियों पर चलना कौन नहीं चाहता है. लेकिन कुछ दाने की विवशता तो कुछ उड़ान की अभिलाषा, विस्मृत करा देती हैं उन्हीं गलियों को जिनसे निकलने को कभी जी नहीं चाहता. बहुत सुन्दर रचना.
16 टिप्पणियाँ:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (05-09-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 107" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
पुराने पथ तो बस स्मृतियों में ही मुस्कराते हैं!
सचमुच स्मृतियाँ फिर से भर देती हैं अंतर को उसी सुगंध से...
इन पगडंडियो से गुजरते हुए अपने कदमो के निशान छोड़ बढते चले………… शुभकामनाएं………।
Bahut hi khubsurat sandarbhyukt kavita.chahe jitne bade highway par nikal jaye hm par sflta ki maap to unhi pagdandio se honi h,jaha se safar shuru kiya tha.
पगडण्डी भले न दिखाई दे .....मुड़ के देखने से ऐसी यादें सुकून देती हैं ....
समय बीत जाता है और शेष रह जाती हैं स्मृतियाँ ...धरोहर बनकर...!!!!
आपके ब्लॉग पर आपकी रचनाएँ पढ़ना सुखद है...
फेसबूक पर आपकी प्रोफाइल नहीं दिख रही है...
शुभकामनाएँ... ... ... !!
Suresh ji, यहाँ तक आने का शुक्रिया:)
ज़िन्दगी तो आगे ही की ओर निकलती है, पुराने पथ तो बस स्मृतियों में ही मुस्कराते हैं!
So true...!Aur kavita behtreen!!
समय के साथ लुप्त होते अरण्य में
खो जाती है पगडण्डी भी
बिसर जाते हैं राही भी
विराम ले लेती है जीवन की कहानी भी
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .
bahut sarthk kavita.
और खो चुके सुख दुखों की
जीतीं हैं स्मृतियों सभी
चमकता है रवि, खिलता है चाँद
झिलमिल करती हैं सितारों की रश्मियाँ भी
बेमिसाल अभिव्यक्ति
भटकन के बाद तो वापस आना ही पड़ता है।
समय ही गुनहगार है वगर्ना अपने प्रिय पगडंडियों पर चलना कौन नहीं चाहता है. लेकिन कुछ दाने की विवशता तो कुछ उड़ान की अभिलाषा, विस्मृत करा देती हैं उन्हीं गलियों को जिनसे निकलने को कभी जी नहीं चाहता. बहुत सुन्दर रचना.
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामना
कभी यहाँ भी पधारें
दौड़ रही हैं राहें दूर तलक
ले जाएँ जहां तक बढ़ते जाओ ख़ुशी ख़ुशी
जिनपर चल रहे हैं आज,
उन पगडंडियों ने मुड़ने से पहले कहा अभी!
...वाह! यही जीवन है...बहुत सार्थक चिंतन...
एक टिप्पणी भेजें